Special Report: 1918 के स्पैनिश फ्लू के सबक को भूल गई दुनिया

Special Report: 1918 के स्पैनिश फ्लू के सबक को भूल गई दुनिया

नरजिस हुसैन

एक बात तो सच है कि आज हम वक्त के उस दौर से गुजर रहे हैं जहां इंसान किसी भी किस्म की बीमारी का आसानी से शिकार हो सकता है। ये बात और है कि हर बीमारी महामारी के स्तर तक नहीं जाती जैसा कि कोरोना वायरस या कोविड-19। दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर से एक नया वायरस कोरोना पैदा हुआ और फिर बड़ी तेजी से लोगों में फैला। अपनेंआप में बिल्कुल नया होने की वजह से न तो इसके बारे में कोई जानता ही थी और न ही किसी इंसान की इम्युनिटी इतनी मजबूत थी कि कोई इसे झेल पाता। शुरूआत में तो ऐसा लगा कि चीन में इसका असर अलग-अलग शहरों में है लेकिन, एक महीने के अंदर ही इसे वैश्विक महामारी का दर्जा मिल गया।

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मार्च के आखिर तक दुनिया में करीब 5 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हुए जिसमें 30,000 की जान गई। कई अन्य देशों के साथ कोरोना से सबसे ज्यादा संक्रमित और मरने वालों में अमेरिका का नाम भी शुमार हुआ। इस महामारी के बाद एकदम से दुनियाभर में लोगों ने हाथ की सफाई और लोगों से दूरी बनाए रखने की आदत डालनी शुरू की। पूरी दुनिया में स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, रेल, बसें, गैर-जरूरी दुकाने सब बंद हो गए। विकसित देशों ने तेजी से कोरोना से लड़ने के लिए दवाइयां और वैक्सीन बनाने में रिसर्च भी शुरू कर दी। और पूरी मानव जाति का कोरोना से जंग लड़ने में एकजुट हो गई। फिलहाल कोरोना का भविष्य क्या है और कब तक इंसान इससे जीत पाएगा यह साफतौर से नहीं बताया जा सकता लेकिन, हां, हमें इतिहास में दर्ज अब तक की वैशविक महामारियों से सबक जरूर लेना होगा।

1918 का स्पैनिश फ्लू हाल के इतिहास की सबसे घातक महामारी मानी जाती है। यह प्रथम विश्व युद्ध के वक्त सैनिकों की एक जगह से दूसरी जगह आवाजाही के जरिए पूरी दुनिया में फैला था। अमेरिका से शुरू हुआ यह फ्लु पूरी दुनिया में फैला जिसने पूरी दुनिया के करीब 500 करोड़ या फिर एक तिहाई लोगों को संक्रमित किया। इसमें 50 करोड़ मारे गए थे जिसमें अकेले अमेरिका के 6,75,000 नागरिक थे। उस वक्त इस महामारी से मरने वालों में बिना बंटवारे वाले भारतीय भी शुमार थे। हालांकि भारत को स्पैनिश फ्लू में मरने वालों से हुए नुकसान का न तो अंदाजा हुआ न ही उसने मरने वालों का कोई हिसाब ही रखा लेकिन, जाने-माने अर्थशास्त्री सिद्धार्थ चंद्रा के 2012 में छपे एक लेख The evolution of pandemic influenza: evidence from India, 1918-19, published in BMC infectious diseases  में बताया गया कि इस महामारी ने करीब 18 लाख लोगों की जान ली जो मोटे तौर पर उस वक्त भारत की आबादी का 6 प्रतिशत थी।

इस वायरस के फैलाव में 5 साल से लेकर 65 साल तक की उम्र के लोगों तक सब शिकार बने। और स्पैनिश फ्लू में मरने वाले ज्यादातर स्वस्थ लोग ही थे। वक्त पर सही दवाइयों और वैक्सीन की कमी के चलते कोरोना की ही तरह इस फ्लू में भी बचाव के तरीको पर ही जोर दिया गया जैसे- हाथ धोना, चेहरे को मास्क के ढंकना, पोषक आहार खाना, अपने घरों में ही रहना यानी सोशल डिसटैनसिंग और भीड़ से दूर रहना।

लेकिन, इस बार जब कोरोना वायरस की शुरूआत एशिया महाद्वीप से हुई तब उसी जल्दबाजी में ताइवान और फिलीपींस ने अपने-अपने देशों में मास्क पहनना जरूरी कर दिया। लेकिन, कोरोना को पश्चिम और कुछ एशियाई देशों ने बहुत गंभीरता से नहीं लेने की गलती की। ब्रिटेन के चीफ मेडिकल ऑफिसर ने तो यहां तक कह दिया कि मास्क पहनना गैर-जरूरी है। हालांकि, एशियाई देशों में मास्क पहनना अमूमन यहां का कल्चर नहीं है। 1918 में अमेरिका से शुरू हुआ स्पैनिश फ्लू में मास्क न पहनना गैर-कानूनी करार दिया था। इस लिहाज से स्पैनिश फ्लू और कोरोना वायरस दोनों में कुछ समानताएं है। 1918 की महामारी में अमेरिका ने दुनिया को मास्क पहनना सिखाया और यही वह पहला मौका था जब अमेरिका ने अपने नागरिकों पर मास्क पहनना कानूनी रूप से लागू किया।

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24 अक्तूबर, 1918 को सैन फ्रांसिस्को ने तो इंफ्लूएजा मास्क अध्यादेश तक जारी कर दिया था। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर जनता के बीच जागरुकता अभियान शुरू कर दिया गया। इस अभियान में रेड क्रास के साथ मिलकर लोगों को यह बताया गया कि किस तरह मास्क पहनने के बाद 99 फीसद फ्लू की चपेट में आने से बचा जा सकता है। इस दौरान कोई भी बिना मास्क के अगर घर के बाहर दिखा तो उसे या तो जेल में डाला गया या सरकार ने मोटा मुआवजा लिया गया। इस अभियान के पॉजिटिव असर के फौरन बाद ही कैलिफोर्निया और बाद में सांता क्रूज और लॉस एंजेलेस में भी इसी अभियान को लागू किया गया। लेकिन, ये 2019 के कोरोना का अमेरिका है जहां इन सब एहतियातों से परे जिंदगी बदस्तूर महामारी के बीच भी चली जा रही थी।

अच्छी बात ये हुई कि लॉस एंजेलेस के मेयर ने लोगों से हर हाल में मास्क पहनने को कहा जब तक ये आदेश आया तब तक पूरे युरोप और उतर अमेरिका में मास्क की स्पलाई काफी कम हो गई। लेकिन, 1918 में अमेरिका ने कंपनियों और फैक्ट्रियों पर भरोसा न कर खुद ही बड़े पैमाने पर मास्क बनाने का काम शुरू किया। चर्च, सामुदायिक केन्द्र और रेड क्रास के सेटंर ने मास्क बनाने की ट्रेनिंग शुरू की। अक्तूबर 1918 में अमेरिका ने युरोप में अपने 45,000 सैनिकों को ये मास्क दिए।

अमेरिकी सरकार की जनता को मास्क पहनाने वाली नीति का जनता ने साथ दिया। और ऐसा न करने पर पुलिस नहीं छोड़ती थी। तो प्रथम विश्व युद्ध के आखिर तक सरकार के सख्त रवैये ने अमेरिका में सबको मास्क पहनने की आदत डाल दी थी। 1918 के दिसंबर के शुरूआत में लंदन के टाइम्स अखबार ने अलग-अलग घटनाओं के हवाले से इस बात की हकीकत पर खबर छापी कि मास्क पहनने से ही स्पैनिश फ्लु को बढ़ने से रोका गया। इसके अलावा 1910-1911 में फैले ग्रेट मंचुरियन प्लेग में भी चीन, रूस, मंगोलिया और जापान के वैज्ञानिकों ने उत्तरी चीन में फैली बीमारी को मास्क के जरिए कामयाब तरीके से फैलने से रोका।

1918 में अमेरिका में तब कि सरकार ने लोगों को बहुत मुशिकल से महामारी के वक्त मास्क पहनना सिखाया था लेकिन, करीब एक सदी बाद अमेरिका से यह सीख सबसे अच्छे तरीके से एशियाई देशों ने ली। इन देशों ने 1918 के अमेरिका से सीखा कि किस तरह संक्रमण को सिर्फ और सिर्फ मास्क पहनकर ही रोका जा सकता है। हालांकि, इसकी वजह यह भी हो सकती है इस लंबे अर्से में एशिया में क्लोलेरा, टायफाइड, 2003 में सार्स और एवियन फ्लू जैसी संक्रमित बीमारी को झेला। इन महामारियों को इन देशों ने मास्क पहनने से ही थामा। अमेरिका और युरोप ने इस लंबे समय में कोई भी महामारी नहीं देखी।

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मौजूदा वक्त में अमेरिका में 3,27,253 लोग कोरोना से संक्रमित हैं जिसमें 99,302 लोग मारे जा चुके है। युरोप के सबसे अच्छी हेल्थ सर्विसेस वाले देश इटली जहां 15,887 और स्पैनिश फ्लू में अपने हजारों नागरिकों को गंवाने वाले स्पेन में 12,418 लोग अब तक कोरोना के कहर का शिकार बन कर अपनी जान गवां चुके है। अमेरिका जो महाशक्ति है आज वह खुद एक छोटे से वायरस से मात खाता हुआ दिखाई दे रहा है अमेरिका अपनी आंखो के सामने एक के बाद एक अपने नागरिकों को मरता हुआ देख रहा है। क्या वाकई इंसानी जान इतनी सस्ती है। इन आंकड़ों को देखते हुए अब यह साफ है कि अमेरिका और युरोप ने तो आखिर 1918 के स्पैनिश फ्लू से कुछ नहीं सीखा लेकिन क्या हमने भी इससे कुछ सीखा।

 

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